DEPRECIATION


                 DEPRECIATION (ह्रास )


किसी सम्पत्ति के मूल्य में किसी भी कारण से होने वाली धीरे-धीरे स्थायी कमी को ह्रास कहते हैं।वस्तुतः मूल्य में ह्रास कई कमी से होती हैं जैसे - टूट-फूट, समय का व्यतीत होना, अप्रचलन, दुर्घटना आदि।सामान्य बोलचाल की भाषा में मूल्य ह्रास का अभिप्राय मूल्य में कमी से लगाया जाता है परन्तु इसे लेखांकन की दृष्टि से देखा जाय तो इसका अर्थ स्थायी स्थायी सम्पत्ति के पुस्तकीय मूल्य में कमी से है।
इंस्टिट्यूट ऑफ़ कास्ट एंड मेनेजमेंट आकउंटिंग लन्दन  के अनुसार " ह्रास पर परिसंपत्ति के वास्तविक मुल्ये में इसके उपयोग एवं समय बिताने के कारन आई घटोत्तरी को कहते है 
ह्रास एवं इससे मेल खाते शब्द : कुछ ऐसे शब्द भी होते है जैसे स्थितिकरण एवं परिशोध जो ह्रास के सम्वन्ध में प्रयुक्त होते है इसका कारण इनका समान लेखांकन व्यावहार है चुकी  शव्द विभिन्न परिसम्पति की उपयोगीता संपत्ति का प्रतिनिधित्व करते है 
  • रिक्तीकरण : रिक्तीकरण  शब्द का प्रयोग प्राकतिक साधनो को खोदकर निकालने के सन्दर्भ  में किया जाता है जैसे खाने खदाने इत्यादि इसमें माल अथवा परिसम्पति की मात्रा की उपलब्धता घाट जाती है 
  • परिशोधन : परिशोधन से अभिप्राय पेटेंट कॉपीराइट , ट्रेडमार्क ,फ्रेंचाइज , ख्याति जिसका एक निश्चित अवधि के लिए ही उपयोग किया जाता है मुल्ये को पुस्तकों में व्यय दिखा कर समाप्त करने से है मुल्ये को पुस्तकों में व्यय  दिखा कर समाप्त करने से है अमूर्त परिसम्पति की लागत एक भाग का अपलेखन या एक अवधि में उसको समाप्त दिखने की प्रक्रिया एक ही है 

ह्रास (Depreciation) की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित है :
  • ह्रास की व्यवस्था स्थायी सम्पत्तियों के लिए की जाती है।
  • ह्रास का आशय किसी स्थायी सम्पत्ति के पुस्तकीय मूल्य में कमी से होता है।
  • ह्रास के रूप में सम्पत्ति के मूल्य में निरंतर कमी होती रहती है।
  • सम्पत्ति के मूल्य में कमी धीरे-धीरे नियमित स्थायी रूप से होती है।
  • ह्रास अनेक कारणों से हो सकता है, जैसे - घिसावट और क्षय, समय का व्यतीत होना, सम्पत्ति का अप्रचलन दुर्घटना आदि।
  • ह्रास एक आगम हानि है जिसे लाभ-हानि खाते में प्रभावित किया जाता है।
  • ह्रास सम्पत्तियों की लागत के वितरण की एक प्रक्रिया है, मूल्यांकन की नहीं।
  • ह्रास गैर-नकद संचालन व्यय है।
ह्रास के आयोजन का प्रमुख उद्देश्य या आवश्यकता निम्नलिखित है :
  • सही उत्पादन लागत ज्ञात करने के लिए समुचित ह्रास की व्यवस्था करना आवश्यक है। यदि ह्रास के लिए आयोजन किया जाये तो वस्तुओं की सही उत्पादन लागत की जानकारी नहीं होगी।
  • ह्रास एक प्रकार का व्यय है। सम्पत्ति के निरंतर प्रयोग से इसके मूल्य में कमी आती है और इस कमी को प्रतिवर्ष लाभ-हानि खाते में लिखना आवश्यक है अन्यथा शुद्ध लाभ या हानि का सही-सही पता नहीं लग सकता है।
  • किसी भी व्यवसाय को सही वित्तीय स्थिति का अध्ययन उसके आर्थिक चिट्ठे द्वारा होता है। अतः यह आवश्यक है कि चिट्ठे में सभी सम्पत्तियों को उनके वास्तविक मूल्य पर दिखाया जाये।
  • ह्रास का एक उद्देश्य यह भी है कि जब सम्पत्ति का जीवन काल समाप्त हो जाये तो नयी सम्पत्ति खरीदकर उसका पुनः-स्थापन किया जा सके।
  • पूँजी को सुरक्षित रखने की दृष्टि से भी ह्रास का प्रबंध किया जाता है।
ह्रास (Depreciation) के मुख्य कारण निम्नलिखित है :
  • सम्पत्तियों के प्रयोग के कारण उनमें टूट-फूट होती है, घिसावट होती है और वे पुरानी एवं कमजोर हो जाती हैं। फलतः उनके मूल्य में कमी जाती है।
  • कुछ सम्पत्तियाँ ऐसी होती है जिनका काल निश्चित होता है। अतः जैसे-जैसे समय व्यतीत होता है, इनके मूल्य में कमी होती जाती है। ऐसे सम्पत्तियों के मूल्य में कमी को समय बीतने पर ह्रास कहते है।
  • कभी-कभी नए आविष्कार के कारण पुरानी सम्पत्ति के बेकार होने के बावजूद उसके मूल्य में कमी जाती है। इस हानि को अप्रचलन से ह्रास कहते हैं।
  • कुछ सम्पत्तियाँ नाशवान प्रकृति की होती है, जैसे - खनिज खदानें, जंगल, तेल के कुँए आदि अर्थात प्राकृतिक सम्पदाएँ। ऐसी सम्पत्तियों में से जैसे-जैसे सामग्री निकाली जाती है, वैसे-वैसे इनके भण्डार में कमी होती जाती है। भण्डार के खाली होने के इस कर्म को को रिक्तीकरण कहते हैं। इस प्रकार रिक्तीकरण ह्रास का एक कारण है।
  • कभी-कभी सम्पत्ति के बाजार मूल्य में गिरावट जाती है। इस प्रकार मूल्य में कमी को ह्रास माना जाता।

ह्रास लेखांकन, लेखांकन की वह पद्धति है जो स्थायी/दृश्य सम्पत्तियों की लागत घटाव अवशिष्ट मूल्य, यदि कोई हो, को उसके उपयोगी जीवन काल में क्रमबद्ध एवं विवेकपूर्ण रीति से बाँटने का उद्देश्य रखती है। इस प्रकार ह्रास लेखांकन का संबंध ह्रास की कुल राशि को सम्पत्ति के उपयोगी जीवन काल में बाँटने से है। पुनः ह्रास काटने से उपक्रम में मूल निवेश का रख-रखाव सुनिश्चित होता है। यह स्वयं हो ऐसी सम्पत्तियों के पुनर्स्थापन के लिए कोष या रोकड़ उपलब्ध नहीं कराता है।
:
  1. यदि सम्पत्ति का क्रय किसी महीने के बीच में किया जाता है तो सुविधा के लिए ह्रास की गणना अगले माह से लेखांकन की अंतिम तिथि तक की जाती है। जैसे यदि मशीन का क्रय 10 जून को हुआ हो तो ह्रास की गणना 1 जुलाई से 31 मार्च तक की जायेगी अर्थात 9 माह के लिए।
  2. यदि सम्पत्ति वर्ष के प्रारम्भ में तथा अंत में विद्यमान हो तो ह्रास की गणना एक वर्ष के लिए की जायेगी।
  3. यदि किसी सम्पत्ति को वर्ष के दौरान बेच दिया जाय तो ऐसी सम्पत्ति पर सम्पत्ति की बिक्री अथवा निस्तारण की तिथि तक का ह्रास निकाला जाना चाहिए।
  4. यदि ह्रास की दर प्रति वर्ष के रूप में दी गई हो और सम्पत्ति के क्रय की तिथि नहीं दी गई हो तो ह्रास की गणना निम्न में से किसी भी विधि से की जा सकती है :
    • अतिरिक्त सम्पत्ति पर ह्रास की गणना की जाय।
    • अतिरिक्त लगाई गई सम्पत्ति पर पूरे एक वर्ष का ह्रास लगाया जाये।
    • अतिरिक्त लगाई गई सम्पत्ति पर माह के लिए ह्रास लगाया जाता है।
मूल्य ह्रास लगाने की अनेक विधियां प्रचलित हैं, उनमें कुछ प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित है :


  • सरल रेखा पद्धति (Straight Line Method)
  • घटते हुए मूल्य पद्धति (Written Down Value Method)
  • वार्षिक पद्धति (Annuity Method)
  • ह्रास कोष पद्धति (Depreciation Policy Method)
  • बीमा पॉलिसी पद्धति (Insurance Policy Method)
  • पुनर्मूल्यन पद्धति (Revaluation Method)
  • कार्य करने की इकाई पद्धति (Depletion Unit Method)
  • मशीन घण्टा पद्धति (Machine Hour Method)
  • वर्ष की इकाइयों की जोड़ पद्धति (The sum of the years digits Method)

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