वायु


वायु
वायुमंडल : हमारी पृथ्वी चारो ओर से वायु की घनी चादर से घिरी हुई है जिसे वायुमंडल कहते है
पृथ्वी पर सभी जीव जीवित रहने के लिए वायुमंडल पर निर्भर है
यह हमे साँस लेने में वायु प्रदान करती है एवं सूर्य की किरणो के हानिकारक प्रभाव से हमारी रक्षा करती है
यदि सुरक्षा की चादर न हो तो हम दिन में गर्मी से जल सकते है और रात में ठण्ड से जैम सकते है
वायुमंडल के संघटक
1. नाइट्रोजन: इस गैस की प्रतिशत मात्रा सभी गैसों से अधिक हैं. नाइट्रोजन की उपस्थिति के कारण ही वायुदाब, पवनों की शक्ति और प्रकाश के परावर्तन का आभास होता है. इस गैस का कोई रंग, गंध या स्वाद नहीं होता. नाइट्रोजन का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह वस्तुओं को तेजी से जलने से बचाती है. अगर वायुमंडल में नाइट्रोजन ना होती तो आग पर नियंत्रण रखना कठिन हो जाता. नाइट्रोजन से पेड़-पौधों में प्रोटीनों का निर्माण होता है, जो भोजन का मुख्य का अंग है. यह गैस वायुमंडल में 128 किलोमीटर की ऊंचाई तक फैली हुई है. 

2. ऑक्सिजन- यह अन्य पदार्थों के साथ मिलकर जलने का कार्य करती है. ऑक्सिजन के अभाव में हम ईधन नहीं जला सकते. यह ऊर्जा का मुख्य स्त्रोत है. यह गैस वायुमंडल में 64 किलोमीटर की ऊंचाई तक फैली हुई है, पर 16 किलोमीटर से ऊपर जाकर इसकी मात्रा बहुत कम हो जाती है.

3. कार्बन-डाई-ऑक्साइड- यह सबसे भारी गैस है और इस कारण यह सबसे निचली परत में मिलती है फिर भी इसका विस्तार 32 किमी की ऊंचाई तक है. यह गैस सूर्य से आने वाली विकिरण के लिए पारगम्य और पृथ्वी से परावर्तित होने वाले विकिरण के लिए अपारगम्य है. 

4. ओजोन- यह गैस ऑक्सिजन का ही एक विशेष रूप है. यह वायुमंडल में अधिक ऊंचाइयों पर ही अति न्यून मात्रा में मिलती है. यह सूर्य से आने वाली तेज पराबैंगनी विकिरण (Ultraviolet Radiations) के कुछ अंश को अवशोषित कर लेती है. यह 10 से 50 किमी की ऊंचाई तक केंद्रित है. वायुमंडल में ओजोन गैस की मात्रा में कमी होने से सूर्य की पराबैंगनी विकरण अधिक मात्रा में पृथ्वी पर पहुंच कर कैंसर जैसी भयानक बीमारियां फैला सकती हैं. 

(a) गैसों के अतिरिक्त वायुमंडल में जलवाष्प और धूल के कण भी उपस्थित हैं.

(b) आकाश का रंग नीला धूल कण के कारण ही दिखाई देता है.

(c) जलवाष्प सूर्य से आने वाले सूर्या तप के कुछ भाग को अवशोषित कर लेता है और पृथ्वी द्वारा विकरित ऊष्मा को संजोए रखता है. इस प्रकार यह एक कंबल का काम करता है. इससे पृथ्वी ना तो अधिक गर्म और ना ही अत्यधिक ठंडी हो सकती है. 

(d) वायुमंडल में जलवाष्प सबसे अधिक परिवर्तनशील और असमान वितरण वाली गैस है. 

  • वायु का उपयोग साँस लेने के लिए होता है नाइट्रोजन और ऑक्सीजन ऐसी दो  गैसे है जिसमे वायुमंडल का बड़ा भाग बना है
  • कार्बन डाई ऑक्साइड , हीलियम , ओजोन , आर्गान , हाइड्रोजन काम मात्रा में पाई जाती है इन गैसे के अलावा धूल के कण भी हम में मौजूद होते है
  • नाइट्रोजन वायु में सबसे अधिक पाई जाती है जब हम साँस लेते है तब फेफड़े में कुछ नाइट्रोजन भी ले जाते है और फिर उसे बाहर निकाल देते है
  • ऑक्सीजन वायु में प्राचुरता से मिलने वाली दूसरी गैस है मनुष्य तथा पशु साँस लेने में वायु से ऑक्सीजन प्राप्त करते है हरे पादप , प्रकाश संशलेषन द्वारा ऑक्सीजन उत्पन्न करते है इस प्रकार वायु में ऑक्सीजन की मात्रा समान बनी रहती है यदि हम वृक्ष काटते है तो संतुलन बिगड़ जाता है
  • कार्बन दे ऑक्साइड  अन्य महत्वपूर्ण गैसे है हरे पादप  अपने भोजन के रूप में कार्बन डाई ऑक्साइड का प्रयोग करते है और ऑक्सीजन वापस देते है मनुष्य और पशु कार्बन डाई ऑक्साइड बाहर निकालते है मनुस्य और पशु द्वारा  बहार छोड़ी जाने वाली कार्बनडाई ऑक्साइड बहार निकलते है मनुस्य तथा पशुओ पादपों द्वारा प्रयोग की जाने वाली  गैस के बराबर होती है तथा खनिज तेल आदि ईधनो के जलाने से गड़बड़ा जाता है वे वायुमंडल में प्रतिवर्ष  करोडो टन कार्बन डाई ऑक्साइड  की बढ़ोत्तरी करते है परिणाम स्वरुप कार्बन डाई ऑक्साइड का बढ़ा हुआ आयतन पृथ्वी पर मौसम तथा जलवायु को प्रभावित करता है
  • ग्रीन हाउस प्रभाव : कार्बन डाई ऑक्साइड वायुमंडल में फैल कर पृथ्वी से विकरित ऊष्मा को पृथ्वी पर रोककर ग्रीन हॉउस प्रभाव पैदा करती है और इसके द्वारा धरती इतनी ठंडी हो जति है की इस पर रहना असम्भव होता है
  • ग्लोबल वार्मिंग ( भूमंडलीय तापन ) : जब कारखानों द्वारा कार के धुँए से वायुमंडल में इसका स्तर बढ़ता है  तब इस ऊष्मा के द्वारा पृथ्वी का तापमान बढ़ता है इसे  ग्लोबल बार्मिंग  कहते है
  • तापमान में इस बृद्धि के कारण पृथ्वी के सबसे ठंडे प्रदेश में जमी हुई वर्फ पिघलती है जिसके द्वारा समुद्र के जल स्तर में वृद्धि होती है जिससे तटीय क्षेत्रों में बाढ़  आ जाती है जब वायु गरम होती है तो फैलती है और हल्की होकर ऊपर उठती है ठंडी वायु सघन और भारी होती है गरम वायु के ऊपर उठने पर आस पास के क्षैत्रो से ठंडी वायु रिक्त स्थानों को भरने के लिए वहाँ आ जाती है इस प्रकार वायु चक्र चलता रे रहता है
  • तापमान ; वायु में मौजूद तप एवं शीतलता के परिणाम को तापमान कहते है वायुमंडल का तापमान केवल दिन और रत में ही नहीं बल्कि ऋतुओ के अनुसार भी बदलता है
  • आतपन; यह एक महत्वपूर्ण कारक है जो तापमान के वितरण को प्रभावित करता है सूर्य से आने  वाली वह ऊर्जा  जिसे पृथ्वी रोक लेती है आतपन कहलाती है
  • तापमान मापने की मानक इकाई डिग्री सेल्सियस है  इस का अविष्कार एंडर्स सेल्सियस ने किया था  सेलसियस पैमाने पर जल  0 डिग्री पर जमता है
  • वायुदाब ; वायुमण्डल में पायी जाने वाली विभिन्न गैसें एवं अन्य तत्व भी भौतिक पदार्थ हैं, अतः इनमें भार होता है। भूपृष्ठ पर वायुमण्डल के दाब या भार को वायुमण्डलीय दाब या वायुदाब या वायुभार कहते हैं। पृथ्वी के चारों ओर कई सौ किलोमीटर की ऊँचाई तक वायु का आवरण फैला है। वायु के इस आवरण का धरातल पर भारी दबाव पड़ता है। अनुमान लगाया गया है कि समुद्रतल के समीप प्रति वर्ग सेण्टीमीटर भूमि पर 1.25 किलोग्राम वायुदाब होता है। अत: हम सदैव ही 112 किलोग्राम वायु का भार अपने ऊपर लादे फिरते हैं, किन्तु फिर भी हमें वायु का कोई दबाव अनुभव नहीं होता। इसका कारण यह है कि हमारे चारों ओर वायु का दबाव समान रूप से पड़ता है। हम वायु के इस महासागर के नीचे उसी प्रकार रह रहे हैं जैसे कि समुद्र के अन्दर जल-जीव निवास करते हैं।
  • पवन : उच्च दाब क्षैत्र से निम्न दाब क्षेत्र की ओर वायु की गति को पवन कहते है 

यह तीन प्रकार की होती है 
1 . स्थायी पवन : व्यापारिक पश्चिमी  एवं पूर्वी पवने स्थायी पवन है ये वर्ष भर लगातार निश्चित दिशा में चलती रहती है 
2 . मौसमी पवने : ये पवने विभिन्न ऋतुओ में अपनी दिशा बदलती रहती है  ex . भारत में मानसुनी  पवने 
3 . स्थानीये पवने : ये पवने किसी छोटे  क्षेत्र में वर्ष या दिन के किसी विशेष समय में चलती गई ex . के लिए स्थल एवं समुद्र समीर 

  • लू Loo: ग्रीष्म ऋतु में उष्ण प्रदेशों में बहने वाली शुष्क हवाओं को लू कहते हैं। भारत में लू उन अति तप्त हवाओं को कहते हैं, जिनका कि तापक्रम 38° सेण्टीग्रेड से 49° सेण्टीग्रेड तक होता है। इस प्रकार की हवाएँ उत्तरी भारत में मई के अन्तिम सप्ताह से जून के अन्तिम सप्ताह तक वहती हैं
  • पछुआ पवन : यह समुद्र तल से लगभग 1600 किलो मीटर की ऊंचाई तक फेला है वायुमंडल में धनत्व भी होता है जो ऊंचाई के अनुसार तेजी से घटता जाता है वायु का लगभग 97 % भाग धरातल से 30 kg मीटर ऊँचा है 
  • चक्रवात : जब कोई क्षेत्र कम वायुदाब का केंद्र बन जाता है तो उसके चारो ओर से अधिक दवाब वाले क्षेत्रों से हवाएं केंद्र की ओर चलने लगती है  जिसे चक्रवात कहते है 
  • प्रतिचक्रवात : चक्रवात के विपरीत इसमें केंद्र में अधिक वायुदाब हो जाता है तथा चारो ओर के बाहरी क्षेत्रों में काम वायुदाब होने से हवाएं केंद्र से बाहर की ओर चलती है जिसे प्रतिचक्रवात कहते है
 

  • वायुमंडल की संरचना :वायुमंडल में वायु की अनेक परतें हैं, जो घनत्व और तापमान की दृष्टि से एक-दूसरे से बिल्कुल भिन्न हैं। सामान्यत: यह धरातल से लगभग 1600 कि.मी. की ऊँचार्इ तक फैला है। वायुमंडल के कुल भार की मात्रा का 97 प्रतिशत भाग लगभग 30 कि.मीकी ऊँचार्इ तक विस्तृत है। तापमान और घनत्व की भिन्नता के आधार पर वायुमंडल को पॉंच परतों में बाँटा गया है-

  1.  क्षोभमंडल
  2.  समताप मंडल
  3.  मध्य मंडल
  4.  आयन मंडल
  5.  बाह्य मंडल

1) क्षोभमंडल :-

वायुमंडल के सबसे नीचे वाले स्तर को क्षोभमंडल कहते हैं। यह परत भूमध्य रेखा पर 18 कि.मी. तथा धु्रवों पर 8 कि.मी. की ऊँचार्इ तक फैली है। भूमध्य रेखा के ऊपर क्षोभमंडल की मोटार्इ अथवा ऊँचार्इ सर्वाधिक होने का कारण संवहनीय धाराओं द्वारा धरातल की उष्मा को अधिक ऊँचार्इ तक ले जाना है। इस परत की ऊँचार्इ बढने के साथ- साथ तापमान में कमी होती जाती है। तापमान 165 मीटर की ऊँचार्इ पर औसत 1 अंश सेल्यिस के हिसाब से घटता जाता है। इसे ‘सामान्य ताप ह्रास दर’ कहते हैं। इस मंडल (परत) में धूल के कणों तथा जलवाष्प की मात्रा अधिक होने के कारण इस परत में सभी प्रकार के मौसमी परिवर्तन होते रहते है। इन परिवर्तनों के कारण पृथ्वी पर जीव-जन्तुओं की उत्पत्ति एवं विकास होता है। इस परत में वायु कभी शांत नहीं रहती। इसीलिए इस मंडल को क्षोभमंडल या परिवर्तन मंडल भी कहते हैं। वायुयान चालक इस स्तर में हवा के उच्छंखल झोकों के कारण वायुयान उड़ाना पसंद नहीं करते।

(2) समताप मंडल :-

क्षोभमंडल के ऊपर समताप मंडल स्थित है। क्षोम मंडल और समताप मंडल के बीच एक पतली परत है। जो दोनों मंडल को अलग करती है जिसे क्षोभसीमा कहते हैं। यह एक संक्रमण क्षेत्र है जिसमें क्षोभमंडल और समताप मंडल की मिली-जुली विशेषताएॅं पायी जाती हैं। समताप मंडल की धरातल से ऊँचार्इ लगभग 50 किमी. है। इस परत के निचले भाग में 20 किमी. की ऊँचार्इ तक तापमान लगभग समान रहता है। इसके ऊपर 50 किमी. ऊँचार्इ तक तापमान क्रमश: बढ़ता है। इस परत के ऊपरी भाग में ओजोन परत होने के कारण ही तापमान बढ़ता है। इसमें वायु की गति क्षैतिज होती है। इसी कारण यह परत वायुयानों की उड़ानों के लिए आदर्श मानी जाती है।

(3) मध्य मंडल :-

समताप मंडल के ऊपर वायुमंडल की तीसरी परत होती है, जिसे मध्य मंडल कहते हैं। धरातल से इसकी ऊँचार्इ 80 किमी. तक है। इसकी मोटार्इ 30 किमी. है। इस मंडल में ऊँचार्इ के साथ तापमान फिर से गिरने लगता है और 80 किमी. की ऊँचार्इ पर 00 से -100 डिग्री सेल्सियस तक हो जाता है।

(4) आयन मंडल :-

यह वायुमंडल की चौथी परत है। यह 80 किमी. से 400 किमी. की ऊँचाइ के बीच स्थित है। इस मंडल में तापमान ऊँचार्इ के साथ पुन: बढ़ता जाता है। यहॉं की हवा विद्युत आवेशित होती है। पृथ्वी से भेजी गयी रेडयो तरंगे इसी मंडल से परावर्तित होकर पुन: पृथ्वी पर वापस लौट आती हैं, जिससे रेडियो प्रसारण संभव होता है।

(5) बाह्य मंडल :-

वायुमंडल का सबसे ऊँची परत बाह्य मंडल कहा जाता है। इस मंडल की हवा अधिक विरल होती है।

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